सूर्यकांत बेलवाल‘अविरल’
सफलता का रास्ता कहीं न कही हमारी असफलता से होकर ही गुजरता है
जीवन को हम जितना आसान समझते हैं कई बार वह उतना ही कठिन लगने लगता है, और कई बार उसे जितना कठिन समझने लगते हैं तो वह उतना ही आसान लगने लगता है। जीवन की यही अनकही परेशानी उसके लिए द्वंद्ध का कारण बन उसे बार-बार परेशान करने की कोशिश करती है, पर क्या जीवन में कोई परेशानी नहीं आनी चाहिए, यह प्रश्न भी यहां विचारणीय बनता है। मानव जीवन कदाचित् परेशानियों के बगैर नहीं जिया जा सकता एवं इस बात से हम कभी इंकार नहीं कर सकते। इस प्रमाण में महादेवियों में देवी सती और रामायण में श्रीराम के चरित्र को याद किया या समझा सकता है। मर्यादा पुरूषोत्तम जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे उन्हें सूर्यवंशी राज्य के बजाए 14वर्षों का कष्टों से भरा वनवास मिला, कंद-मूल खाने पड़े। जब भगवान को जंगल में रहकर कष्ट झेलने पड़े, पितृ वियोग देखना पड़ा, पत्नी वियोग सहना पड़ा तो आम आदमी या हम साधारण जीव इन कष्टों से कैसे परे रह सकते हैं।
हमारे जीवन में निश्चित रूप से कई पल खोने और पाने के आते है। न चाहकर भी हमें वियोग सहना पड़ता है, असफलताओं को झेलना पड़ता है। पर केवल असफलता और वियोग भी जीवन नहीं। हर रात के बाद सुबह है, अमावस के बाद पूर्णमासी है। उसी प्रकार अगर कष्ट आया है तो वह दूर भी होगा, बशर्ते हम उस कष्ट की गहराई तक पंहुच सकें। पर हमें यह भी मानना होगा कि कई किनारे कभी नहीं मिलते पर ऐसा नहीं है कि हम खुद किनारों तक पहुंच के लिए प्रयास ही न करें। सफलता का रास्ता कहीं न कही हमारी असफलता से होकर ही गुजरता है अगर हम बार-बार असफल हो रहे हैं तो हमें मान लेना चाहिए कि सपफलता अब ज्यादा दूर नहीं रही है, लेकिन कई बार हम जीत के शिखर पर थककर, मायूस होकर प्रयास छोड़ देते हैं। जबकि निश्चित रूप से सपफलता मिलने वाली थी। बिहार के जीतन मांझाी जैसे कई उदाहरण हैं जो अपने अदम्य साहस के बदौलत आज इतिहास पुरूष बन गये हैं।
हम उस नन्हीं चींटी से भी प्रेरणा ले सकते हैं जो अपने वजन से कई गुना बोझ लेकर ऊंची चढ़ाई पर चढ़ने का बार-बार प्रयास करती है, गिरती है, संभलती है पर हार नहीं मानती। वह ठान लेती है कि उसे यह बोझ;खानाद्ध लेकर ऊपर चढ़ना ही है, और वह इस संघर्ष में जीत जाती है। यहां चींटी की इस जीत के पीछे उसकी एकमात्रा सोच यही थी कि उसे बस ऊपर जाना है जो बोझ उठाया है उसे नीचे नहीं छोड़ना है। उसी प्रकार लक्ष्य हमें हमारी जीत की ओर ले जाता है। याद रखना जरूरी है कि कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती......। गिरना कोई शर्म की बात नहीं, गिरकर न उठना शर्म की बात हो सकती है, गिरते हैं घुड़सवार ही मैदान जंग में। हम घुड़सवार भी बनना चाहें और घोड़े की दुलत्ती से भी दूर भागें, घोड़े गिरना भी नहीं चाहे, यह संभव नहीं। निरंतर और निरंतर प्रयास ही जीवन की अपेक्षित सफलता का मूल मंत्रा है। कई बार हम इसलिए भी असफल होते हैं कि तमाम शिक्षा के बाद भविष्य के चौराहे से उस रास्ते को पकड़ लेते हैं जो कहीं जाता ही नहीं था, उसे केवल जीवन के भटकाव के लिए बनाया गया था, तीन रास्ते और थे पर हमारी समझ को वही एक रास्ता समझ आया और तब होश आया जब हम उस अंजाने अभागे रास्ते पर बहुत दूर निकल चुके थे। तो यहां दोष हमारी समझ का है। कई बार हम अपने भविष्य के लिए ऐसी शिक्षा ले लेते हैं जो हमारे व्यवहार, सोच-समझ के बिल्कुल विपरीत होती है औरिफर उसे प्राप्त करने के बाद हमें दुविधा के सिवा कुछ नहीं मिलता, इसके लिए हमें समय रहते ही कोई फैसला लेना चाहिए। जीवन के हवन कुण्ड में कूदने से पहले उस चौराहे पर खड़े होकर कोई एक रास्ता चुनने से पहले हमें अपनी बुद्धि, विवेक के प्रयोग के साथ-साथ परामर्श को भी अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। असफलता के रास्ते पर चलने से अच्छा है हम सफलता के रास्ते पर भले ही देर से चलें पर जब चलें तो सफलता हमारी कदम चूमें।
संकलन-‘शिखा’
असफलता के पश्चात सफलता अवश्यम्भावी है मान लेना चाहिए